রবিবার, ১২ ফেব্রুয়ারী, ২০১৭




Earth Testing Process ; घर कि आर्थ परिक्षा प्रक्रिया -- ঘরের আর্থ পরিক্ষা পদ্ধতি ।।



                                        “मन”
                         (sree DEBASISH DASGUPTA )
मै लंबे समय तक अनेक इंसान को अच्छासे अध्धायन करके कुछ निर्णय लिए – इस धरती पे समस्त प्राणी को समय की साथ जो परीबर्तन होता उसके बड़ा अंश निर्भर करता उहि प्राणिके मानसिक मांग-सोच-बिचार के ऊपर- मन के ऊपर।। उदारहन के हिसाब से-हमलोग अक्सर बोलता हु,देख— उह देखनेमे डॉक्टर जैसा,शिक्षक जैसा,चोर जैसा,हमलोग तो कोही चित्र इया नक्सा देखके बोलता नेही,लेकिन जो जिस क्षेत्र पे काम करता उसके सोच-बिचार-भाबना और मानसिक चिंता उसि इंसान के चेहेरे पे शरीर के गठन पे प्रकट होने लागता,परीबर्तन आने लागता॥
लेकिन किउ ऐसे होता? जब एही प्रश्न मन मे आनेलगा तो मै  देखा उहि सब इंसान अपना मन को जीने की जरूरत के दिशा मे चालित कीयथा-जो निर्देशन बाहक चुनब (Directional Selection) के लिए उनके अंदर स्वार्थपर जिन (Selfish gene) सही समय पर मन के जरूरत की अनुसार परिबर्तन मे सहायता किया ॥
 फिर हमलोग जब कोही मनुष्य के बंश के बारे मे चर्चा करताहू तब उनके बंश के कोही प्रशिद्ध-ईया बुरा पुर्बज की द्रीष्टांत देतहु। डाक्टर-शिक्षक-नेता-अभिनेता के लिए कोही नया जिन होता नेही-लेकिन हमलोग देखा पुर्बज के भीतर एही सब गुनके असर अनेबला पीड़ी पर परता। किउ? किउ की उहि समय से ही **“जैबबिकश (Organic Evolution) शुरू होने लगाता। और बादमे उहि सब दोष-गुण जिन के  (Dominant Gene) ऊपर प्रभाब डालता,और अनुकरण होने लागता (Adaptation),प्रारम्भ होता नया जिनकी॥ और एहीसे ही शुरू होता इंसान (प्राणी)के शरीर-मस्तिष्क-बुद्धि की बिकाशमे परिबर्तन॥“**
 मैंने देखा एक धनी परिबार के सन्तान किशोर अबस्था तक शुख भोग किया तब उसके शुन्दर चेहेरा,और जब उनके परिबार के खाराप समय आया तब उसके शरीर के गठन मे परिबर्तन अनेलागे-धीरेधीरे उनके चिंता-काम-काज की अनुसार, हातपायरके चमरा,रंग मे भी परिबर्तन होने लगा॥ फिर इसके उल्टा असर हुया एक गरीब परिबारके संतान जब इंजीनीयर बना तब। बुरा साथीसे मिलने लगा एक शिक्षित युबा,--गलत उपाय से धनी बना,--शुशील लेडका बास कांटरकटर बना,तब सब के अंदर परिबर्तन आने लगे। मैने अनेक दोस्त, रिसतेदार को भी अद्धायन करके देखा एही सब परिबर्तन होता सब के जीने के लिए चिंता-रास्ता के सन्धान और मनमे आयाहुया स्थायी भाबना के लिए।
 [जब एक प्राणी या प्रजाती के जिन पे परिबर्तन आने लागता उह एक बिशिष्ट समय से हि होता और शुरुयात भि किसि एक प्राणी से ईया तो उहि प्राणी समुदाय  से हि होने लागता ; निर्देशन चुनाब (Directional Selection) के लिए। आज उह समय को निर्नय कर ने मे बैज्ञानिक भाबना कि जरूत है ]

आब एहि तक देखते हुये हामे समजमे आया एक इन्सान पर धर कि परिबेस भि असर डालता।
आज हर पल हामारा समाज कि प्रगति होराहा- साथ मे हर परिबार को भि हर पल नया नया दिशा के तलास करने पडराहा । इस कारण आपना सन्तान कि प्रति नजर देने मे भि समस्या होरा । आर सन्तान जब स्कुल जाने लागते तो सब को दिलमे एहि बिस्वास – भरोसा होने लागता स्कुल मे जब तक है तब तक एक आच्छा परिबेश पे है। एहि होना स्वाभाबिक ; लेकिन मै आगे भि लिखा कि घर कि परिबेश भि मनमे असर डालता ; स्कुल पर अनेक स्टुडेन्ट होने कि मतलब आलग आलग भाबधारा के साथ मिलन होना; एहि  से स्टुडेंट कि मानसिक बिचार जिसके साथ जिसका “सामान्य” एक जैसे हो या मिलता ऊसिके साथ हि दोस्ति होता – और बादमे शुरु होता परिबर्तन ।।  
  
हर स्कुल के शिक्षक को एहि समय को नजर राखने परेगा आज तो सि.सि- टि.भि हि अनेक सहायता करसेकता ।।
आर ईस कि आधार पर हर स्कुल पर माहिना मे एक बार एक डाक्तार द्वारा हर स्टुडेट को काऊन्सिलन्ग कराना जरुरि है ।। ईसमे शिक्षक को भि शिक्षादान मे आपना अंदर कुछ कमिया है तो सुधारने मे सुबिधा होगा और माता – पिता को भि ;  किउ कि स्टुडेन्ट हि आगे पिता–माता कि; बाद मे समाज कि; फिर देश कि भबिश्य है ।।
   बिश्व मे हर सरकार अनेक ऊद्दोग लिया; सिर्फ ऊद्दोग लेने सेहि काम नेहि होता – काम होता हामलोग केतना उसके लाभ ऊटाने सेखा उसके उपर ।। अर्थात हामे भि ईसमे सहोयोग देने होगा और लेने भि होगा ।।
  – “पाल्स पोलिउ” टिका जैसे सफल हुया; उईसे ईस को भि समाजिक रोग सोच के हामे आगे बाडने पडे गा ।। आगे शिक्षादान एक सेबा था; आज “शिक्षक” पेशा हिसाब से लिया गिया-शिक्षक को भि आपना मन मे परिबर्तन लाने होगा ।। ईसलिए समस्त शुभ बुद्धि इंसान से आबेद्न है आज-- बिशेष जरूरत है समस्त मतभेद की आबशान हो ईसके ऊपर ज़ोर दीजिये॥
““सायद शिक्षा मे बिस्तृत पड़ने से ही आच्छा हो सेकता”” -बस्तुगत शिक्षा एक  मन की -बुद्धि की बिकश मौन(Silent) करदेता, और जब मन की बिकाश एक सीमा तक होगा तब चिंन्ताके, भालाबुरा सोचनेके-शक्ति भी कम होने लागेगा। और मनुस्य की आसली ऊपादान नैतिकता मे-चरित्र मे प्रभाब परेगा॥

 **[ हामे रोग से हि लडना चाहिये - रोगी से नेहि ]**
                                       
                         श्री देबाशिस दाशगुप्त ( sree Debasish Dasgupta – INDIA)

( एहि लेख मे केबल मेरा सोच या भाबना को आपके पास निबेदन करराहा हु सहि अथबा गलत कि बिचार के मालिक भि आप ; किसि को भि दुख पौछाना मेरा भाबना मेरा मन मे नेहि ;)